लेखक – अनुपम शुक्ला
श्री कृष्ण जी की भक्तिमय गंगा में जन मानस ने उन्हें मनाने हेतु अनेक आरती का गायन किया। किंतु श्री कृष्ण जी का भक्त तो कोई भी हो सकता है। फिर चाहे वह चोरत्व कर्म में ही प्रवृत्त क्यूं न हो। उसे भी तो अपने भगवान को आपने भाव से मनाने का अधिकार है। अत : यह रचना केवल चोर के अंदर श्री कृष्ण भक्तिमय भाव को प्रदर्शित करती है।
जय चोरेश्वर,जय मुरलीधर,जय जय माखन चोर हरे।। जय पापहरण जय मुक्तिकरण जय दुखहरण श्री कृष्ण हरे।
आधिरात्रि तिमिर भयंकर, गड़ गड़ करते रहे अंबुधर।।
चम चम चपला कंप धराधर,मानो तांडव करते शंकर।।
मेघो से निजअंक हरणकर, प्रगटे श्री घनश्याम मनोहर।
अतिअंधियारे प्रकटनहारे,दुख दारिद्र की हानि करें।।
गइया के चरैया,लाज रखैया, चोरन के सरदार हरे।
चोरन भयहारी, श्री वनवारी ,आरती आपकी चोर करे।
जय पापहरण जय मुक्तिकरण जय दुखहरण श्री कृष्ण हरे।
जय चोरेश्वर, जय मुरलीधर, जय जय माखन चोर हरे।१
गोपिन के चीरहरण करके, संग राधा जी के मन को हरे।
ग्वालवाल संग खेले खाए, हिरण्यगर्भ अगर्व करे।
नागनथे गोवर्धन धारे ,और वज्रधर का मान हरे।
नाग नथैया किशन कन्हैया, चोरन के सरदार हरे।
चौरत्व भाव भर दो मन में,चोरन को शक्ति दो तन में।
चोरन के स्वामी अंतरयामी,तुम बिन कोन सहारा करे।
चोरन भयहारी, श्री वनवारी ,आरती आपकी चोर करे।
जयमानहरण,जयमुक्तिकरण,जयभावहरण श्रीकृष्ण हरे
जय चोरेश्वर, जय मुरलीधर,जय जय माखन चोर हरे।२
कंश अगाशुर संग बकाशुर, इन दुष्टों के प्राण हरे।
महाभारत में दुष्ट दलन कर, अवनि का सबभार हरे।।
गीता का गायन कर डाले, जन्ममरण का भान हरे।
चोरों के तुम एकमात्र नाथ हमे,चुरफंदी में प्रवीण करो।
पुलिस,न्यालय और जेल के,भय कष्टों को नाथ हरो।
भक्तन के कष्ट हरा करते प्रभु, जन्मजन्म के पाप हरे।
चोरन भयहारी, श्री वनवारी ,आरती आपकी चोर करे।।
जय पापहरण जय तापहरण जयदुखहरण श्रीकृष्णहरे।
जय चोरेश्वर,जय मुरलीधर,जय जय माखन चोर हरे।।३
शक्ति भरदो इन कर में प्रभु, ताला टूटे हर घर का प्रभु।
लक्ष्मी जी सदा हो सहाय प्रभु, निर्धनता कभी न आए प्रभु।।
न हो धंधे में कोई भूल प्रभु ,हो स्थिति सदा अनुकूल प्रभु।
न हों राहों का कोई सूल प्रभु। अर्पित तुमको ये फूल प्रभु।।
मोर मुकुट धारण करके प्रभु, तुमने सबके चित को हरे।
बलराम के भईया किशन कन्हैया,मणिरुकमणी का हरन करे
चोरन भयहारी, श्री वनवारी ,आरती आपकी चोर करे।।
जय पापहरण,जय तापहरण,जय शुखकरण श्री कृष्ण हरे।
जय चोरेश्वर, जय मुरलीधर, जय जय माखन चोर हरे।l४
यह प्रामाणिक किया जाता है कि यह रचना केवल अनुपम शुक्ला की अपनी कविता है। यह किसी अन्य के माध्यम से प्रकाशित नही हुई है।
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