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लैंसेट की रिपोर्ट में बड़ा दावा, हवा में भी फैल रहा है कोरोना वायरस फिर किस मास्क का करें इस्तेमाल और क्या है सही तरीका ?

हवा से कोरोना संक्रमण फैसले की खबरों के बीच मास्क के इस्तेमाल को लेकर विशेषज्ञों ने अहम बात कही है। डॉक्टर फहीम यूनुस ने ट्विटर पर कहा है कि लोगों को एन95 या केएन95 जैसे मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने ये बात हाल में ‘द लैंसेट’ जर्नल में छपी उस स्टडी को लेकर कही है जिसमें बताया गया है कि कोरोना हवा के जरिए भी फैल रहा है।

विशेषज्ञों ने जो दावे किए हैं, उनसे पता चलता है कि संक्रमण से बचने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग काफी नहीं है.

इस पेपर को अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के छह विशेषज्ञों ने मिलकर लिखा है. जिसमें कहा गया है कि ‘कोरोना वायरस हवा में फैलने वाली बीमारी नहीं है, ये बात साबित करने के लिए अपर्याप्त आधार हैं’ जबकि ‘वैज्ञानिक सबूत कुछ और ही बात बताते हैं.’ (Coronavirus Lancet Report) विशेषज्ञों ने तुरंत कोविड-19 से बचावे के प्रोटोकॉल में बदलाव करने को कहा है. अपनी बात साबित करने के लिए इन्होंने 10 कारण बताए हैं.

कोरोना वायरस फिर किस मास्क का करें इस्तेमाल और क्या है सही तरीका ?
कोरोना वायरस फिर किस मास्क का करें इस्तेमाल और क्या है सही तरीका ?

पहला कारण-

विशेषज्ञों ने कहा, ‘सुपरस्प्रेडिंग इवेंट्स में पर्याप्त सार्स-सीओवी-2 फैलता है, वास्तव में इस तरह के इवेंट महामारी के शुरुआती चालक हो सकते हैं.’ मानव व्यवहार और बातचीत, कमरे के आकार, वेंटिलेशन और अन्य कारकों के विस्तृत अवलोकन से पता चलता है कि ये एक हवा में फैलने वाली बीमारी है. और इसे ड्रॉपलेस्ट या फिर फोमाइट से पर्याप्त रूप से नहीं समझा जा सकता है.

दूसरा कारण-

क्वारंटाइन के लिए इस्तेमाल होने वाले कमरों में लोग एक दूसरे के सामने भी नहीं आते हैं लेकिन फिर भी वहां सार्स-सीओवी-2 फैल रहा है.

तीसरा कारण-

विशेषज्ञों ने कहा है कि जो लोग छींक या फिर खांस नहीं रहे हैं, वो भी कोविड के कुल मामलों में 33 फीसदी से 59 फीसदी तक वायरस के एसिम्प्टमैटिक या प्रीएसिम्प्टमैटिक ट्रांसमिशन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं. इससे भी साबित होता है कि कोरोना हवा में फैलने वाली बीमारी है.

चौथा कारण-

कोरोना वायरस चार दीवारी के बाहर कम और इनडोर यानी चार दीवारी के अंदर अधिक तेजी से फैलता है. ये इनडोर वेंटिलेशन से कम भी हो जाता है.

पांचवां कारण-

पेपर में विशेषज्ञों ने कहा है कि नोसोकॉमियल इन्फेक्शन (जो अस्पताल में पैदा होते हैं) वह उन स्थानों पर भी पाया गया है, जहां स्वस्थकर्मियों ने ड्रॉपलेट्स से बचाव के लिए पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट) किट पहने हैं. क्योंकि पीपीई किट को ड्रॉपलेट्स से बचने के लिए डिजाइन किया गया था ना कि एरोसोल एक्सपजोर (हवा के जरिए फैलने वाला संक्रमण) के लिए.

छठा कारण-

विशेषज्ञों ने कहा है कि सार्स-सीओवी-2 हवा में भी पाया गया है. लैब में किए गए एक्सपेरिमेंट्स में वायरस तीन घंटे तक हवा में रहा है. विशेषज्ञों ने उस दावे को खारिज कर दिया है कि संक्रमण हवा में कम फैला है. इसके लिए खसरा और टीबी की दलील दी गई थी, जो मुख्य रूप से वायु जनित रोग थे, लेकिन ये कमरे की हवा में नहीं फैले.

सातवां कारण-

विशेषज्ञों ने कहा है कि सार्व-सीओवी-2 कोविड-19 मरीज वाले अस्पतालों के एयर फिल्टर और बिल्डिंग डक्ट्स में भी पाया गया है. इन स्थानों पर केवल एयरोसोल के जरिए ही पहुंचा जा सकता है.

आठवां कारण-

विशेषज्ञों ने पिंजड़ों में बंद उन जानवरों का हवाला दिया, जो कोरोना से संक्रमित हुए हैं. जिससे पता चलता है कि सार्स-सीओवी-2 का संक्रमण हवा के जरिए भी फैलता है.

नौवां कारण-

विशेषज्ञों ने एक और तर्क देते हुए कहा कि हमारी नजर में ऐसा कोई भी अध्ययन नहीं है जो ये साबित करने के लिए मजबूत और तर्कयुक्त सबूत दे सके कि सार्स-सीओवी-2 हवा में फैलने वाली बीमारी नहीं है.

दसवां कारण-

अपने अंतिम तर्क में विशेषज्ञों ने कहा है कि ऐसे साक्ष्य बेहद कम हैं, जो संक्रमण फैलने के अन्य मार्गों जैसे रेस्पिरेटरी ड्रॉपलेट्स (मुंह से निकलने वाली बूंदें) या फिर फोमाइट का समर्थन कर सकें.

विशेषज्ञों के इन दावों से साबित होता है कि दुनियाभर में वायरस से बचाव के लिए अपनाई जा रही रणनीति में बदलाव करने की जरूरत है. लोगों के लिए ना केवल बाहर बल्कि घर के अंदर या यहां तक कि हर समय मास्क पहनना जरूरी है. विशेषज्ञों ने ये भी कहा है कि अगर संक्रमित शख्स सांस छोड़ता है, चिल्लाता है, गाना गाता है, छींकता है या फिर खांसता है, तो हवा में सांस लेने वाला शख्स भी संक्रमित हो सकता है. इससे पता चलता है कि दुनिया में कोरोना वयरस महामारी से बचाव के लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है, उसमें बदलाव की जरूरत है.

Ed.Sourabh Dwivedi
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